मृत्यु के बाद वसीयत की वैधता | भारत में एक वसीयत को चुनौती देने के लिए सीमा अवधि

मृत्यु के बाद वसीयत की वैधता / भारत में एक वसीयत को चुनौती देने के लिए सीमा अवधि – वसीयत एक क़ानूनी दस्तावेज होता हैं. जिसमें आप अपनी विरासत को सहूलियत के साथ सही हाथ में छोड़कर जा सकते हैं. वसीयत लिखना अच्छी बात हैं. जिसमें आपके उत्तराधिकारी आपकी मेहनत का सही लाभ उठा सकते हैं. आप जीवित रहते हुए वसीयत बना सकते हैं.

वसीयत में आप अपनी संपति का बंटवारा अपने अनुसार कर सकते हैं. अगर आप अपनी संपति किसी ट्रस्ट को देना चाहते हैं. तो इसकी सहूलियत भी वसीयत में दी जाती हैं.

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दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से मृत्यु के बाद वसीयत की वैधता के बारे में बताने वाले हैं. इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान करने वाले हैं. तो यह सभी महत्वपूर्ण जानकारी पाने के लिए आज का हमारा यह आर्टिकल अंत तक जरुर पढ़े.

तो आइये हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं.

मृत्यु के बाद वसीयत की वैधता / भारत में एक वसीयत को चुनौती देने के लिए सीमा अवधि

ऐसा माना जाता है की वसीयत पंजीकृत हो या अपंजीकृत हो वह किसी भी समय वैध मानी जाती हैं. वसीयत की कोई भी सीमा नहीं होती हैं. वह किसी भी समय प्रभावी हो सकती हैं. अगर वसीयतकर्ता उतीर्ण हो जाता हैं. तो उतीर्ण हो जाने के 12 साल तक भी वह चुनाव लड़ सकता हैं. इसका मतलब यह होता है की मृत्यु के बाद 12 साल तक वसीयत की वैधता रहती हैं.

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वसीयत बनाने के नियम और कानून क्या है

वसीयत बनाने के कुछ नियम और कानून हमने नीचे बताए हैं.

  • अगर कोई व्यक्ति 18 साल से अधिक उम्र का है. और दिमाग से स्वस्थ हैं. तो ऐसा व्यक्ति स्वयं वसीयत बना सकता हैं.
  • वसीयत बनाने के लिए किसी भी प्रकार के स्टेम्प पेपर की जरूरत नही होती हैं.
  • वसीयत की वैधता के लिए इसका रजिस्टर करवाना जरूरी नहीं होता हैं. लेकिन फिर भी अगर रजिस्टर करवाते हैं. तो हमारे लिए अच्छा माना जाता हैं.
  • जो व्यक्ति वसीयत बनवाता हैं. उसमें उस व्यक्ति के हस्ताक्षर का होना जरूरी होता हैं. साथ में वसीयत में दो गवाह के हस्ताक्षर की भी जरूरत पड़ती हैं. ऐसा इसलिए किया जाता है की वसीयत बनवाने वाला व्यक्ति सच में वही हैं. जिसने वसीयतनामा बनवाया हैं.
  • कई बार ऐसा होता है की किसी एक ही संपति का कई बार वसीयतनामा बनवाया गया होता हैं. और इस दौरान वसीयत बनवाने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती हैं. तो ऐसी परिस्थिति में वही वसीयत सही मानी जाती हैं. जो सबसे आखिरी में लिखी होती हैं.
  • वसीयत बनवाने के लिए वसीयत लिखाने वाले के शब्दों को माना जाता हैं.
  • अगर वसीयत लिखने के बाद किसी भी प्रकार की धोखाधड़ी प्रतीत होती हैं. तो ऐसी वसीयत ख़ारिज कर दी जाती हैं. यानी की ऐसी वसीयत को क़ानूनी तौर पर मान्यता नहीं देकर उसे रद्द किया जाता हैं.
  • जो व्यक्ति वसीयत लिखता हैं. उससे पहले वसीयत जिसके नाम लिखी गई हैं. उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती हैं. तो ऐसी वसीयत को निष्प्रभाव किया जाता हैं. इसलिए वसीयत बनवाने के दौरान दो व्यक्ति के नाम वसीयत में लिखने की सलाह दी जाती हैं. जैसे की उदाहरण के रूप में समझा जाए तो- मेरे गुजर जाने के बाद संपति दिनेश को दे दी जाए और दिनेश भी गुजर जाए तो यह संपति रमेश को दे दी जाए.
  • अगर किसी व्यक्ति की वसीयत में किसी भी प्रकार की कमी हैं. तो कोर्ट उसे प्रभावी बनाने का प्रयास कर सकता हैं.

इस प्रकार से वसीयतनामा लिखने के लिए कुछ नियम और कानून को ध्यान में रखना होता हैं.

साइलो किसे कहते है हिंदी में बताइए उत्तर दीजिए

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निष्कर्ष

दोस्तों आज हमने आपको इस आर्टिकल के माध्यम से मृत्यु के बाद वसीयत की वैधता बताइ है. इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान की हैं.

हम उम्मीद करते है की आज का हमारा यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा. अगर उपयोगी साबित हुआ हैं. तो आगे जरुर शेयर करे. ताकि अन्य लोगो तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंच सके.

दोस्तों हम आशा करते है की आपको हमारा यह मृत्यु के बाद वसीयत की वैधता / भारत में एक वसीयत को चुनौती देने के लिए सीमा अवधि आर्टिकल अच्छा लगा होगा. धन्यवाद

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